नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच एक नाम चर्चा में है — सुशीला कार्की। वह नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं और अब Gen Z आंदोलन के ज़रिए उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में भूमिका निभाने के लिए समर्थन मिल रहा है। आइए जानते हैं उनके जीवन, संघर्ष और इस मायने वाले कदम की कहानी।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को बिराटनगर, मोरंग जिले में हुआ। वे सात भाई-बहनों में बड़ी बहन हैं। अपनी प्रारंभिक शिक्षा नेपाल में हुई। इसके बाद उन्होंने भारत के वाराणसी स्थित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) से राजनीति शास्त्र में मास्टर्स की पढ़ाई की और बाद में त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल से कानून की डिग्री प्राप्त की। इस शैक्षिक पृष्ठभूमि ने उन्हें न्याय और राजनीति की समझ दी।
करियर और न्यायपालिका में पद
वकील के रूप में उन्होंने वकालत की शुरुआत की, फिर क्रमशः सुप्रीम कोर्ट में एड-हॉक जस्टिस और बाद में स्थायी न्यायाधीश बनीं। जुलाई 2016 में सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश बनीं — नेपाल की इतिहास की पहली महिला चीफ जस्टिस। इस दौरान उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों में सख्त कार्रवाई की और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा की।
विवाद और राजनीतिक संघर्ष
उनके कार्यकाल में कुछ विवादों ने भी जन्म लिया। सरकार और राजनीतिक दलों ने उन पर आरोप लगाए कि उन्होंने न्यायपालिका को राजनीतिक दबाव में आने से रोकने के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। पुलिस प्रमुख की नियुक्ति से जुड़ी विवादों के बाद एक महाभियोग प्रस्ताव भी पारित हुआ, लेकिन जनता के दबाव और न्यायालय के हस्तक्षेप से यह वापस ले लिया गया।
मान्यता, लेखन और सामाजिक प्रतिबद्धता
सुशीला कार्की न्यायाधीश ही नहीं, लेखिका भी हैं। उन्होंने ‘न्याय’ नामक आत्मकथात्मक पुस्तक लिखी और उपन्यास ‘कारा’ प्रकाशित किया, जिसमें जेल और बंदी महिलाओं के अनुभवों को भागीदारी दी गई है। ये कृतियाँ उनके जीवन के उन पहलुओं को उजागर करती हैं जो सार्वजनिक सेवा और सामाजिक न्याय से जुड़े हुए हैं।
नेपाल में Gen Z का समर्थन और लोकतांत्रिक उम्मीद
साल 2025 के Gen Z आंदोलन ने सुशीला कार्की को एक गैर-पार्टी प्रतिनिधि के रूप में देखा है — क्योंकि युवा वर्ग भ्रष्टाचार और पारदर्शिता संबंधी मुद्दों पर नये नेतृत्व की उम्मीद करता है। सरकार गिरने और सोशल मीडिया प्रतिबंध जैसे कदमों के बाद, युवा नेताओं ने उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में समर्थन दिया। उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया है, लेकिन पूर्ण रूप से सत्ता सौंपने से पहले संवैधानिक प्रक्रिया पूरी करनी है।
नेतृत्व और प्रेरणा
सुशीला कार्की का जीवन केवल न्यायपालिका तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस सोच का प्रतीक है जिसमें समाज की महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाने का सपना शामिल है। उन्होंने न्यायपालिका में रहते हुए जिस तरह भ्रष्टाचार और राजनीतिक दबाव के खिलाफ आवाज़ उठाई, उसने उन्हें आम जनता की नज़रों में एक ईमानदार और निडर चेहरा बना दिया। यही वजह है कि जब नेपाल राजनीतिक संकट में फंसा तो युवाओं ने उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री पद के लिए चुना।
उनकी सबसे बड़ी ताकत है निष्पक्षता और पारदर्शिता। यही गुण उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाते हैं। सुशीला कार्की मानती हैं कि राजनीति केवल सत्ता पाने का साधन नहीं, बल्कि जनता की सेवा और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का माध्यम है। आज जब नेपाल भ्रष्टाचार और वंशवाद जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, तब उनका नेतृत्व एक नई उम्मीद जगा रहा है।
युवा पीढ़ी उन्हें केवल एक नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक रोल मॉडल के रूप में देख रही है। उनकी यात्रा इस बात का प्रमाण है कि अगर ईमानदारी और साहस साथ हो, तो बदलाव किसी भी स्तर पर संभव है।
निष्कर्ष
सुशीला कार्की का जीवन एक उदाहरण है कि कैसे न्यायिक स्वतंत्रता, व्यक्तिगत लक्ष्य और सामाजिक न्याय मिलकर एक नेता तैयार करते हैं। Gen Z आंदोलन के इस नए दौर में उनका नाम सिर्फ प्रतीक नहीं, बल्कि परिवर्तन का संकेत है। यदि वह अंतरिम प्रधानमंत्री बने, तो नेपाल के लोकतंत्र और न्यायपालिका दोनों को नए आयाम मिल सकते हैं।